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Book online «ना जाने क्यों…??? - शुभेंदु भूषण त्रिपाठी (that summer book txt) 📗». Author शुभेंदु भूषण त्रिपाठी



ना जाने क्यों

ना जाने क्यों…??? (मेरी पहली मोहब्बत)

 

 

 

तेरे हुस्न के कायल हम क्यों हुए,

देखा तुझको जब आते हुए, ना जाने घायल हम क्यों हुए,

 

तेरी आंखो की चमक देख न जाने उनके कायल हम क्यों हुए,

हुस्न तेरा ऐसा उतरा इस दिल में न जाने घायल हम क्यों हुए,

 

मोहब्बत हुई देख तुझको,

इस पहली मोहब्बत के आशिक़ हम क्यों हुए,

 

तूने दी जब इस दिल में दस्तक,

तेरी मोहब्बत के शिकार हम क्यों हुए,

 

रोज सवेरे जब तू आए, जुल्फें अपनी यू बलखाए,

हुस्न तेरा मदहोश बनाए, आशिक़ तेरे यू मंडराए,

 

तू पहली मोहब्बत थी मेरी, कहानी बन के रह गई

लाया था जो चॉकलेट उस दिन, तेरी सहेली उेस चट कर गई,

 

ना कभी बतलाया, ना कभी इकरार किया,

अपनी मोहब्बत का तेरे सामने न जाने क्यों न इकरार किया,

 

तूने जो उस दिन पूछा मुझ से मैंने न जाने क्यों इंकार किया,

 

क्या चूक हुई मुझसे, क्या भूल हुई मुझसे,

इस बात को ये आशिक़ आज भी सोच पछताता है,

 

सोचता हूं काश बोल देता उस दिन,

इस बोझ तले, ये दिल आज भी रोता है,

 

जब कभी भी मैंने ये पूछा अपने इस दिल से, ख़ता किस की है,

ये दिल भी बे-धड़क बोल उठा तेरे सिवा किस की है,

 

रोक जो लेता खुद की जुबां उस दिन,

खफा ना होती ये तक़दीर फिर मेरी शायद,

 

माना मैंने थे तेरे चाहने वाले कई शायद,

वफा तू भी करती कितनों से शायद,

 

हुस्न तेरी कुछ यू छाया था सब पर,

भोली सूरत में प्यारा बचपन जो छुपाया था तूने,

 

तुम किसी और की मंजिल की मुसाफ़िर थी,

उस मंजिल को भी भटकाया था हमने,

 

तुमको अपना बनाना था,

कइयों को तुमसे अलगाया था हमने,

 

अब मोहब्बत ही ऐसी की थी तुमसे,

न होश था न थी कोई ख़बर,

 

ये दर्द ये आशिक़ी ने जो बतलाया मुझको,

बस की थी मैंने तेरी ही फ़िक्र,

 

शायद टूटने लगा था, शायद कहीं खोने लगा था मै,

अपनों से जुदा खुद को तेरी मोहब्बत में खोने लगा था मै,

 

ये कम्बक्त मोहब्बत जो थी पहली,

दिल की दारिया को छूने लगी थी,

 

न जाने क्यों हम अब भी एक आस लगाए बैठे थे,

तेरी मोहब्बत मिल जाए ये ख्वाब सजाए बैठे थे,

 

5 दोस्तो थे जो मेरे, वो भी मुझसे आस लगाए बैठे थे,

शायद मै बोल दूं अब भी उसको, ये वो भी ये ख़्वाब सजाए बैठे थे,

 

पांडे, शुक्ला और मौर्या भाई तेरी बातें शायद उस दिन मानी होती,

शुक्ला जो ले आया मुझे लाइब्रेरी से बुलाकर,

 

काश उस दिन मैंने अपने दिल कि कहानी अपनी ज़ुबानी बोली होती,

फिर शायद खुशियां सारी इस तकदीर में होती,

 

आज मुझे भी ये एहसास है, की जो गलती मैंने की शायद,

कहीं दबा इस दिल में उसका भी एक इतिहास है,

 

डर बस एक बात का था, कहीं हो न जाए वो किसी और कि,

ग़म मेरे जज़्बात का था, ठुकरा न जाए हमे वो कभी,

 

दिल की उम्मीदों में शायद अब जंग लगने लगा था,

धीरे धीरे वक़्त भी हांथो से मेरे फिसलने लगा था,

 

अब न जाने क्या होगा..?? कैसे होगा...?? क्यों होगा...???

 

दिल भी मेरा हौले से ये कहने लगा था,

 

न जाने उस खुदा ने कैसी तकदीर तराशी थी हमारी,

अब तो ऐसा लगने लगा था जैसे उदासी से ही भर दी हो उस खुदा ने झोली हमारी,

 

अब तो बस एक बेचैनी सी होती है, वो जब भी पास होती है,

दिल को कुछ सुकून सा लगता है, अपनों के बीच कोई मासूम सा लगता है,

 

वफाओं की गर्दिश में जो बात कहीं थी शायद,

उस बात का अब कोई वजूद सा नहीं लगता है,

 

पास थे तेरे कितने फिर भी,

तुझको अपना नसीब न बना सके,

 

ये दिल मुझसे ये बात हर बार पूंछा करता है कि कितना प्यार था तुझे उससे..?

मै इस दिल की हर बात को सुना देता था बतला देता था,

 

अपने गमों के आंसू,

इस दिल को सुना देता था,

 

दूर रहना तुमसे न जाने क्यों,

इस दिल की भी फितरत बन जाने लगी थी,

 

यादों को तेरी दिल से लगाए,

जिंदगी की हकीक़त बन जाने लगी थी,

 

मैंने कोशिश तो बहुत की बोल दूं तुझको,

ये हाल ये दिल,

लेकिन शायद तुझे मेरे दिल की बात सुनने की फुर्सत कहां थी,

 

तेरी यादों की परछाई को सोचा दोस्त बना लूं,

लेकिन न जाने क्यों परछाई भी दूर चली गई,

 

अकेले उन राहों पे तेरा इंतज़ार करता था,

गलियों और चौराहों पर तेरा आखरी दीदार करता था,

 

जब पास था तो तेरे,

न जाने क्यों न इजहार करता था,

 

अकेले बैठ कर भी सपनों में तेरा इंतज़ार करता था,

न जाने क्यों तू अब मुझ से खफा होने लगी थी,

 

शायद मिल गया था तुझको कोई दूसरा आशिक़,

जिसपे तू फिदा होने लगी थी,

 

तू चाहत उसकी भी थी, तू चाहत मेरी भी थी,

हम न मिल सके, शायद मुझसे ज्यादा मोहब्बत तुमसे उसकी थी,

 

तुम तो अब मेरी जिंदगी की एहसास बन के रह गई हो,

इस दिल के एक छोटे से कोने में मेरा अधूरा ख़्वाब बन के रह गई हो,

 

सोचता हूं क्यों इतनी फ़िक्र तेरी मुझे अब भी न जाने क्यों है,

इस जिस्म की हर नस नस में छुपी तेरी वो झलक अब भी न जाने क्यों है,

 

शायद तू अब पराई सी होने लगी थी,

इस दिल में अब तन्हाई सी होने लगी थी,

 

वक़्त काश रुक जाता उस मोड़ पर,

जिस मोड़ पे तू मेरी परछाई सी होने लगी थी,

 

मुश्किल था लेकिन ना मुमकिन तो नहीं,

पाना था तेरी मोहब्बत को,

 

जज़्बात मेरे कुछ इस कदर मुझ पे हावी होने लगे,

आंसू बिन कहे अब बह जाने लगे,

 

तेरी यादों की दंस्ता,

अब तो मेरे ये कलम कहती है,

 

काश बोल दिया होता,

ये अब मेरी हर पल निकलती सांस कहेती है,

 

अश्रु बहते है तेरी यादों में जाकर,

जज़्बात कहेते है अब सपनों में आकर,

 

नींद चली गई है तेरे जाने की बाद,

चैन नहीं मिल रहा किसी और के आने के बाद,

 

राहें मेरी कुछ ऐसी बंजर सी हो चली है,

आंसू भी मेरे अब मुझसे खफा हो गए है,

 

रुकती नहीं है तेरी यादों की बरसात इस दिल में,

दिल भी कहता है अब बिन धड़के ये जज़्बात अब मेरे,

 

चहेरा तेरा जब उस दिन देखा तेरा,

न जाने क्यों खफा सी लगी तू,

 

सोचा कुछ बोल दूं तुझको,

दिल के सारे दरवाजे अब खोल दूं,

 

फिर न जाने क्यों ये दिल ठहर सा गया,

सोचा अब तो तू पराई हो गई है,

 

क्या ज़ख्म दू तुझे अब,

तू तो अब इस दिल की तन्हाई सी हो गई है,

 

सोचा क्यों उबारू ज़ख्म अपने,

तू तो अब पराई सी हो गई है,

 

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(STILL CONTINUE)

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Imprint

Text: शुभेंदु भूषण त्रिपाठी
Images: शुभेंदु त्रिपाठी त्रिपाठी
Cover: शुभेंदु भूषण त्रिपाठी
Editing: शुभेंदु भूषण त्रिपाठी
Publication Date: 05-29-2020

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