शायद यही है प्यार - अभिषेक दळवी (best book reader .txt) 📗
- Author: अभिषेक दळवी
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" ओह माय गॉड....." देव चिल्लाया।
" क्या हुआ ?" मैंने पूछा।
" अरे मैंने जल्दबाजी में निकलते वक्त रूम को बाहर से कुंडी लगाई है।" देवने कहा।
देवने जब यह बताया तब हमें जबरदस्त शॉक लगा अगर वॉर्डनने रूम को बाहर से कुंडी लगाई है यह देख लिया, तो दो सेकंड में उसे पता चल जाएगा कि हम रूम में नहीं है और उसके बाद हमारा बचना नामुमकिन था।
" अब क्या करें ?" मैंने पूछा।
" अब वॉर्डन हमें पकड़ लेगा। हमें बाहर जाना ही नहीं चाहिए था। हम फँस गए हैं। " देव कह रहा था।
वॉर्डन को देखकर उसके पसीने छूट गए थे।
" देव डरो मत। वह अब ग्राउंड पर ही है फिर ग्राउंडफ्लोर चेक करेगा फिर फर्स्ट फ्लोर पड़ जाएगा और बाद में अपने फ्लोर पर आएगा तब तक हम रूम में पहुँच सकते हैं।" विशालने कहा।
" पर हम अपने रूम तक जाए कैसे ? ऊपर के फ्लोरपर जानेवाली सीढियां बिल्डिंग के उस तरफ है और वह वॉर्डन के आँखों के सामने है।" विकीने कहा।
" मेरे साथ आओ बताता हूँ।" बोलकर विशाल बिल्डिंग के पीछे की तरफ जाने लगा। उसके साथ हम भी बिल्डिंग के पीछे की तरफ आ गए। आस पास देख कर उसने एक कोने में पड़ी लकडी की सीढ़ी उठाई। हम बिल्डिंग के जिस तरफ थे वहांपर हॉस्टल के तीनों फ्लोर के वॉशरूम्स थे। वह सीढ़ी उसने फर्स्टफ्लोर के वॉशरूम की खिड़की को लगा दी।
" सुनो, हमें सीढ़ी से फर्स्ट फ्लोर के वॉशरूम में जा सकते हैं और वॉशरूम से निकलकर भागते हुए सीढ़ियों तक पहुंच जाएंगे और फिर वहां से अपने फ्लोरपर जाकर अपने रूम में चले जाएंगे। वॉर्डन वॉचमन से बात करने के बाद ग्राउंडफ्लोर के रूम चेक करके जब सीढ़ियों तक पहुंचेगा तब तक हम अपने अपने रूम में पहुंच चुके होंगे।" विशालने कहा।
उसने डिप्लोमा हॉस्टल पर रहकर ही किया था। इसलिए शायद ऐसी बातों का उसे एक्सपीरियंस था। उसका आईडिया बिल्कुल बराबर था क्योंकी हमारा वॉर्डन बूढ़ा था। वह जब तक ग्राउंड फ्लोर का राउंड लगाकर फर्स्ट फ्लोरपर आनेवाली सीढियों तक पहुंच जाता तब तक हम रूम में पहुँच सकते थे। सीढ़ी पर चढ़ कर हम एक एक करके खिड़की से वॉशरूम के अंदर आ गए। अंदर अंधेरा था खिड़की से थोडी बहुत रोशनी आ रही थी। हम वॉशरूम से बाहर आने के लिए दरवाजे तक पहुंचे, तब हमें दूसरा शॉक लगा क्योंकी वॉशरूम का दरवाजा बाहर से बंद था। हमारा यह प्लान पूरी तरह फेल हो चुका था। हम वापिस नीचे जाने के लिए जिस खिडकी से आयह थे उसी खिड़की के पास आ गए। आदित्यनेनीचे जाने के लिए सीढ़ी पकड़ने की कोशिश की पर जल्दबाजी में उसका सीढ़ी को धक्का लग गया और वह खिड़की से अलग होकर जमीन पर गिर गई। हमारा वापिस जाने का रास्ता भी अब बंद हो चुका था। हम वॉशरूम में ही अटक गए थे।
" अब क्या करें ? हम इधरही फँस गए यार।" देवने कहा। उसकी आवाज से वह रोने की हालात में है यह साफ समझ में आ रहा था।
" अब हमें कोई भी नहीं बचा सकता।वार्डन किसी भी वक्त रूमतक पहुँच जाएगा।" आदित्यने कहा।
तब ही हमें बाहर से किसी के जूतों की आवाज सुनाई देने लगी। कोई वॉशरूम की तरफ़ आ रहा था। वॉर्डन के सिवा दूसरा कोई हो ही नहीं सकता। वह जूतों की आवाज वॉशरूम के दरवाजे के पास आ आकर रुक गई। वॉर्डन दरवाजे के सामने है यह हमें समझ रहा था। मैं ध्यान देकर आवाज सुनने लगा। बाहर से कुंडी खोलने की आवाज आ रही थी। वह सुनकर हमारी साँसे गले में ही अटक गई। विकी मुझे और देव को लेकर बेसिन के नीचे छुप गया। आदित्य और विशाल टॉयलेट में जाकर छिप गए। आसपास अंधेरा था। वार्डन ने दरवाजा खोल दिया। दरवाजे के बाहर की ट्यूबलाइट खराब हो चुकी थी उससे थोडी दूरी पर जो लाइट थी उसकी रोशनी दरवाजे से अंदर आ रही थी। हम लोग बेसिन के नीचे छिपे हुए थे। उस रोशनी में वॉर्डन हमें नहीं देख सकता था। पर जब उसने वॉशरूम की लाइट ऑन करने के लिए बटन दबाया तब डर की वजह से हम बेहोश ही होनेवाले थे पर हमारा लक अच्छा था, वॉशरूम की लाइट खराब थी अगर ट्यूबलाइट ऑन हो जाती तो हमें भगवान भी नहीं बचा सकता था। वॉर्डन उसकी छोटी सी टार्च के रोशनी में अंदर आया और हमसे सामने से चलते हुए टॉयलेट में चला गया। उसने जैसे टॉयलेट का दरवाजा बंद किया हम सब वहां से निकलकर भागते हुए अपने अपने रूम में आ गए। आज हम बाल बाल बचे थे। रूम में आने के बाद विकीने मुझे नजरों से ही देव की तरफ देखने का इशारा किया। देव की तरफ देखकर मुझे बहुत हँसी आ रही थी क्योंकी वह लड़कियों की तरह रो रहा था। हमारे साथ आने का उसको बहुत पछतावा हो रहा था। उसके बाद वह हमारे साथ कभी रात के समय बाहर नहीं आया।
देव के बिना हम लोग कभी कभी ऐसे ही बाहर जाते थे। रतन का खेत में जो घर था वह तो हमारे लिए अड्डा बन चुका था। वहां हमें डिस्टर्ब करनेवाला या फिर रोकनेवाला कोई नहीं था। हर संडे को वहां हम देसी मटन , कलेजी फ्राय और रोटियां का प्लान करते थे। उसके साथ रम और बीयर भी रहती थी पर मेरे सिवा बाकी सब ड्रिंक्स लेते थे। मैंने आज तक ड्रिंक्स को हाथ नहीं लगाया था। यहां आने से पहले माँने मुझे कहा था।
" अभी, बेटे घर से दूर जा रहे हो। मजा मस्ती करो पर नशे के बारे में सोचना भी मत।"
माँ की यह आज्ञा मैं अच्छी तरह से फॉलो कर रहा था। पर कहते हैं ना कुत्ता बिल्ली को परेशान किए बिना और दोस्त दोस्त को बिगाड़े बिना चैन की साँस नही लेते , यह बात बिल्कुल भी गलत नहीं है। मेरे दोस्तोंने मुझे बिगाड़ने की पूरी प्लानिंग की थी।
विकी का बर्थडे था, तब रात को बारह बजे हम सब रतन के घर आ गए। सेलिब्रेशन के बाद विकीने सबके पास कोक बॉटल पास की। मैने जब कोक का सिप लिया तब उसका टेस्ट मुझे कुछ अलग महसूस हुआ। उसे पीने के बाद मेरे सिर में थोड़ा दर्द होने लगा इसलिए मैं जाकर सो गया। देर रात में मैं वॉशरूम जाने के लिए उठ गया और अंधेरे में घर से बाहर चला गया। उसके बाद क्या हुआ वह मुझे ठीक से याद नहीं पर सुबह जब मैं जग गया तब मैं जानवरों के तबेले में रखे हुए चारे पर सो रहा था। आसपास देखा तो पता चला कि रतन के घर से थोड़ी दूर जो तबेला है मैं वहांपर हूँ। मेरे आसपास सिर्फ भैसे ही दिखाई दे रही थी शायद रातभर में यही था। रात को मुझे जो शक हुआ तो वह बिल्कुल सही था। उस कोक में विकीने रम मिक्स की थी। मैं वहां से रतन के घर आ गया जहां हमने रात को पार्टी की थी। वहां कोई नहीं दिख रखा था। घर के सामने बाइक्स भी नहीं थी। मेरे मोबाइल की बैटरी लो होकर वह स्विच ऑफ हो गया था। मुझे मेरे इन दोस्तों पर बहुत गुस्सा आ रहा था वह लोग मुझे अकेला छोड़कर चले आए थे। वहां से ऑटो पकड़कर में हॉस्टल पर आ गया।वहां आकर देखा तो आदित्य और मेरे दोनों के रूम के दरवाजे बाहर से बंद थे।देव आसपास भी कहीं नजर नहीं आ रहा था। संडे के दिन भी यह सब कहा गए है यह मुझे समझ में नहीं आ रहा था। एक तो रात को धोखे से मुझे रम पिलाई और अब मुझे अकेला छोडकर घूमने चले गए थे। मुझे उनपर बहुत गुस्सा आ रहा था। सब लोग जब वापस आएंगे तब उन्हें में देख लूंगा। यह सोचकर मैं फ्रेश होकर कॉलेज ग्राउंड पर फुटबॉल खेलने चला गया। वहां से वापिस आने तक दोपहर के एक बज गए थे। मैंने रूम में आकर देखा रूम में विकी, देव , आदित्य और विशाल कल रात के कपड़ों में उदास होकर बैठे थे। उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था जैसे शादी के मंडप से उनकी बीवी उन्हें छोड़ कर भागी गई है। मुझे देखते ही विकी दौड़ते हुए मेरे पास आया और मुझे झट से गले लगा लिया।
" अच्छा हुआ यार तू मिल गया। हम कितने घबरा गए थे।" विकीने कहा।
वह ऐसा क्यों बोल रहा है ? यह मेरे समझ में नहीं आ रहा था। तब ही आदित्यने आकर मेरे सिर पर एक थप्पी मारी।
" तुम कहां थे। तुझे हमने कितना ढूँढा पता है ? अगर तुम नहीं मिलते तो हम पुलिस में कंप्लेंट करनेवाले थे।" आदित्यने कहा।
" पर तुम मुझे क्यों ढूंढ रहे थे?"
" सुबह से कहां गायब हो गए थे ? हमें लगा तुम हॉस्टल आए गए हो इसलिए हम यहां आ गए। तुम यहां पर भी नहीं थे। तुम्हारा मोबाइल स्विच ऑफ आ रहा था। हम फिर रतन के गांव गए। पूरे गाँव में तुम्हें ढूंढा रतन के पापा की डांट भी सुनी।" विशालने कहा।
उन्होंने सुबह से लेकर अब तक जो भी हुआ था वह सब कुछ मुझे बता दिया। मैं बिना वजह उन पर गुस्सा हुआ था। वह बेचारे सुबह से मेरी फिक्र कर रहे थे। रात को कोक में रम मिलाने का आइडिया विकी का ही था और उसी की वजह से यह सब कुछ हुआ था। आज उसका बर्थडे था पर बेचारे का पूरा दिन सिर्फ डांट सुनने में ही बीत गया था।
विकी आजकल थोड़ा अजीब बर्ताव करने लगा था। सुबह जल्दी उठकर पहले लेक्चर के एक घंटे पहले ही कॉलेज में जाता था, सुधीर जैसे वह भी हमारे नोट्स लेकर झेरोक्स निकालकर लाता , वह अकेले लेक्चर बंक करता था। मतलब वैसे हम भी लेक्चर बंद किया करते थे पर ग्रुप के साथ अकेले नहीं। उसका ऐसा बदला हुआ बर्ताव देखकर मुझे शक होने लगा था। इसलिए आज वह हमारी नोट्स लेकर झेरोक्स निकालने के लिए चला गया तब मैं भी उसके पीछे पीछे जाने लगा। आदित्य और विशाल हमारी प्रॉक्सी लगाते थे इसलिए अटेंडेंस की टेंशन नहीं थी। विकी थर्ड फ्लोर के परेश भाई के स्टोर पर नोट्स देकर झेरॉक्स निकालने के लिए रुक गया पर उसकी नजर बार बार स्टोर के बगलवाली लायब्ररी के अंदर जा रही थी। वह बी एस्सी की लायब्ररी थी और अंदर स्टूडेंट्स बैठे थे। वहां लड़के कम और लड़कियां ज्यादा थी। वैसे देखा जाए तो किसी भी कॉलेज के लायब्ररी में लड़कों से ज्यादा लड़कियां ही रहती है क्योंकी लड़कों को लायब्ररी की याद सिर्फ एग्जाम के पहले आती है। विकी के इस बदले हुए बर्ताव की वजह मुझे अब समझ में आ रही थी। इंजीनियरिंग में लड़कियां कम थी इसलिए विकीने अब बी एस्सी पर फोकस किया था। मैं उसके पास गया।
" तो कौन पसंद आई ?" मैंने पूछा। मुझे ऐसे सामने देखकर और मेरा सवाल सुनकर वह थोड़ा चौंक गया।
" कौन पसंद आई, मतलब ?" उसने पूछा।
" विकी बेटा बिल्ली आँखें बंद करके दूध पीते हैं इसका मतलब यह नहीं है कि दुनिया को उसकी हरकते नजर नहीं आती। तुम रोज यहां आकर लौंडीया देखते हो, हमें सब कुछ पता है।" परेशभाईने कहा। वह अब दुकान में ही बैठे थे।
" विकी अब बता भी दे कौन है वह लड़की?" मैंने पूछा।
" मुझे नाम नहीं पता उसका।" विकीने बताया।
" भैया बयालीस रुपयह हो गए।" झेरॉक्स की दुकान में काम करनेवाला बंटी ने विकिसे कहा।
" तुम्हारे पास छुट्टे पैसे है ?" विकीने पूछा।
" नहीं छुट्टे नहीं है। तू अब बात को घुमाने की कोशिश मत कर उस लड़की का नाम बता।" मैंने फिर पूछा।
" अरे सच में नहीं पता।" कहकर उसने जेब से सौ की नोट निकाली और बंटी को देने लगा। मैंने सौ की नोट झट से विकी के हाथ से छीन ली।
" अभी, नोट दे मेरी चुपचाप।" कहकर वह मेरे हाथ से नोट छीनने की कोशिश करने
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